ऋतुराज बसंतऋतु के आगमन के साथ ही धरती फिर अपने आप को सजाने संवारने में लग जाती है।प्रकृति अनेक तरीकों से अपने श्रृंगार में जुटी रहती है।उत्तराखंड की धरती भी अपने श्रृंगार में कोई कसर नहीं छोड़ती।वह भी अपनी बसंती चुनर को बुरांश के सुर्ख चटक लाल तथा गुलाबी रंग के फूलों से साथ साथ खुमानी, आडू ,पूलम ,नाशपाती, फ्योली के रंग बिरंगे फूलों से सजा कर अपने श्रृंगार में चार चांद लगाती हैं।

उत्तराखंड राज्य में अत्यधिक मात्रा में पाए जाने वाले बुरांश के इस वृक्ष को उत्तराखंड में “राज्य वृक्ष” की उपाधि से नवाजा है।यानी रोडोडेंड्रोन अर्बोरियम (लाल बुरांश) का यह वृक्ष उत्तराखंड का राज्य वृक्ष है। उत्तराखंड में बुरांश की 6 प्रजातियां तथा एक उपप्रजाति पाई जाती है।लाल बुरांश लगभग 1800 से 3600 मीटर की ऊंचाई वाले क्षेत्रों में सामान्य रूप से पाया जाता है।हिमाचल में इसकी लगभग 15 प्रजातियां पाई जाती हैं।यहां लाल ,सफेद तथा नीले रंग के फूल पाये जाते है।

उत्तराखंड और हिमाचल में यह पाया जाता है। इसे पहाड़ी फूल भी कहते हैं। नेपाल का राष्ट्रीय फूल बुरांश है। ये फूल गर्मी के मौसम में होते हैं। पहाड़ों पर रहने वाले लोग गर्मी के मौसम में इसका शर्बत बनाकर पीते हैं। इसके अलावा इससे पराठा, चटनी, पकोड़े और वाइन भी बनाए जाते हैं। इसका वानस्पातिक नाम रोडोडैन्ड्रोन अरबोरियम (Rhododendron arboreum Sm.) है। ये इरासेसिए (Ericaceae) परिवार से ताल्लुक रखता है। बुरांश को ट्री रोडोडैन्ड्रोन (Tree rhododendron), कामरी (Kamri) और बरास (Baras) के नाम से भी जाना जाता है।

काफल

काफल
उत्तराखंड राज्य में कई प्राकृतिक औषधीय वनस्पतियां पाई जाती हैं , जो हमारी सेहत के लिए बहुत ही अधिक फायदेमंद होती हैं। बहुत ही कम लोग खासकर की शहरों में बसने वाले लोगों को इस पहाड़ी फल के बारे में जानकारी नहीं है। इस फल का नाम है “काफल” । काफल का फल जमीन से 4000 फीट से 6000 फीट की उंचाई में उगता है। ये फल उत्तराखंड के अलावा हिमाचल और नेपाल के ​कुछ हिस्सों में भी होता है । इस फल का स्वाद मीठा व खट्टा और कसैले होता है । यह एक सदाबहार वृक्ष हैं | इस फल का वैज्ञानिक नाम ” myrica esculenta” कहा जाता है एवम् इसे बॉक्स मर्टल और बेबेरी भी कहा जाता है। काफल फल के पौधे को कही भी उगाया नहीं जा सकता हैं | यह स्वयं उगने वाला पौधा हैं | मार्च के महीने से काफल के पेड में फल आने शुरू हो जाते हैं और अप्रैल महीने की शुरुवात के बाद यह हरे-भरे फल लाल हो जाते हैं

यूं तो उत्तराखंड के हरे-भरे पहाड़ बहुत खूबसूरत हैं। जितने खूबसूरत यहां के पहाड़ हैं उतनी ही खूबसूरत पहाड़ की संस्कृति है। कहने को यह एक जंगली फल है लेकिन अपने खट्टे-मीठे स्वाद के कारण यह पहाड़ों पर फलों के राजा के रूप में पहचाना जाता है। पहाड़ के सफर पर मई महीने से लेकर जून अंत तक आपको छोटे-छोटे बच्‍चों को सड़क किनारे खड़े होकर चिल्लाते हुए दिखाई दे देंगे, ‘काफल ले लो काफल’। अगर आप पहाड़ी गांवों में पहुंच गए तो आपका स्वागत काफल खिलाकर किया जाएगा। “काफल” उत्तराखंड का स्वादिष्ट और पौष्टिक फल है। यह सिर्फ फल ही नहीं बल्कि उत्तराखंड की संस्कृति का हिस्सा भी है। अगर काफल को बचाया नहीं गया तो यह फल और संस्कृति एक दिन विलुप्त हो सकती है।