हर्रावाला, देहरादून-“शिक्षा में शुचिता और प्रक्रिया का पालन अनिवार्य” — उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय की सख्ती का दिखने लगा असर, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री माननीय श्री पुष्कर सिंह धामी की भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस नीति एवं शिक्षा व्यवस्था में पारदर्शिता और गुणवत्ता सुनिश्चित करने के दृढ़ संकल्प के क्रम में उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय प्रशासन ने एक और सख्त और निर्णायक कदम उठाया है ।
2019-20 सत्र में NEET काउंसलिंग प्रक्रिया के बाहर निजी होम्योपैथिक कॉलेज द्वारा सीधे दाखिला प्राप्त करने वाले बी.एच.एम.एस. विद्यार्थियों के परीक्षा परिणामों को रोकने का निर्णय, विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा लिया गया एक ऐतिहासिक और अनुशासनात्मक कदम माना जा रहा है।
विश्वविद्यालय के कुल सचिव, वरिष्ठ पीसीएस श्री रामजीशरण शर्मा के निर्देशन में लिए गए इस निर्णय में स्पष्ट किया गया है कि शिक्षा संस्थानों में नियमों का पालन अनिवार्य है, और जो भी दाखिले नियत प्रक्रिया (काउंसलिंग बोर्ड) के बाहर किए गए हैं, उन्हें वैध नहीं माना जा सकता।
न्यायिक पुष्टि से सुदृढ़ हुआ विश्वविद्यालय का रुख
बिना नीट काउंसलिंग से निजी संस्थाओं द्वारा प्रवेशित विद्यार्थियों के परीक्षाफल को विश्वविद्यालय द्वारा रोका गया था जिसके क्रम में संबंधित कॉलेज द्वारा मा० उत्तराखंड उच्च न्यायालय, नैनीताल में संशोधन याचिका दायर की थी, जिसकी सुनवाई माननीय न्यायमूर्ति श्री मनोज कुमार तिवारी द्वारा दिनांक 16 मई 2025 को की गई। जिसमें सर्वप्रथम संशोधन याचिका को स्वीकार करते हुए सुनवाई की।जिसमें
संबंधित विद्यार्थियों के पक्ष की ओर से तर्क दिया गया कि चूंकि उनकी मूल याचिका को 08 अप्रैल 2024 को निरर्थक मानते हुए खारिज कर दिया गया था, अतः परिणाम रोका जाना अनुचित है।
किन्तु विश्वविद्यालय की ओर से शासकीय अधिवक्ता श्री संदीप कोठारी द्वारा स्पष्ट रूप से न्यायालय को अवगत कराया गया कि दाखिले नियमानुसार विश्वविद्यालय की काउंसलिंग प्रक्रिया के बिना हुए थे, अतः विश्वविद्यालय को परिणाम रोकने का पूरा अधिकार है। माननीय न्यायालय ने संशोधन याचिका को खारिज करते हुए यह स्पष्ट कर दिया कि इस निर्णय में कोई भी वैधानिक त्रुटि नहीं है और विश्वविद्यालय की कार्यवाही पूर्णत: विधिसम्मत है।
सख्ती का उद्देश्य: शिक्षा में पारदर्शिता, नियमों का सम्मान
उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय का यह रुख एक स्पष्ट संकेत है कि अब शिक्षा व्यवस्था में किसी भी प्रकार की अनियमितता, शॉर्टकट या आयुर्वेदिक शिक्षक की मानक संस्था भारतीय चिकित्सा पद्धति के लिए राष्ट्रीय आयोग ए राष्ट्रीय होम्योपैथी आयोग, आयुष मंत्रालय भारत सरकार के नियमों के उल्लंघन को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
कुल सचिव श्री रामजीशरण शर्मा ने इस निर्णय पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि माननीय मुख्यमंत्री जी एवं सचिव आयुष के निर्देशन मैं आयुर्वेदिक शिक्षा में गुणोत्तर सुधार के लिए सतत प्रयास जारी रहेगा। विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर अरुण कुमार त्रिपाठी ने कहा कि भारतीय चिकित्सा पद्धति के लिए राष्ट्रीय आयोग ( एन.सी.आई.एस.एम. ), एवं राष्ट्रीय होम्योपैथी आयोग, आयुष मंत्रालय भारत सरकार द्वारा आयुर्वेदिक, यूनानी, होम्योपैथी आदि की शिक्षा पद्धति के लिए लागू सभी मानकों का अनुपालन कराने के लिए विश्वविद्यालय अग्रसर है। शिक्षा में भ्रष्टाचार को समाप्त करने की दिशा में यह सिर्फ एक शुरुआत है, आगे और भी कड़े निर्णय लिए जाएंगे।