कहते हैं इतिहास की गहराई कभी खत्म नही होती। ऐसा ही एक इतिहास है उत्तराखंड के एक गांव का.. देवभूमि उत्तराखंड एक ऐसा क्षेत्र जिसका संबंध पाषाण काल सभ्यता से लेकर पौराणिक काल से मिलता है। ऐसा इसलिए क्योंकि यहाँ आदिमानवों की बस्तियों के सबूत मिले हैं । कहा जाता है पुर्व में राजा महाराजाओं ने यहां अश्व मेघ यज्ञ भी करवाये हैं लेकिन उत्तराखंड के इन इतिहास को कभी भी गंभीरता से नही लिया गया और ना ही अब भी इसे लेकर कोई सजग है। इस क्षेत्र में कहें या पूरे उत्तराखंड में यहां हर जगह कुछ ना कुछ ऐतिहासिक सबूत बिखरे पड़े हैं जिनको संजोना बहुत जरूरी है
इसी क्रम में ये ये ऐतिहासिक लेख हल्द्वानी को लेकर है। कहा जाता है ये हल्द्वानी के एक गांव में हल चलाते हुवे कई बार अशर्फियाँ मिली हैं । और ये एक या दो बार नहीं बल्कि कई बार हो चुका है इस जगह का नाम है कमौला-धमोला., जहां कई बार प्राचीन काल के अवशेष मिल चुके हैं। आपको बताते चलें कि कमौला में कुमाऊं रेजिमेंट का एक काफी बड़ा फार्म फैला हुआ है। औऱ यही नज़दीक गौलापार में कालीचौड मंदिर है जिसका ही अपना प्राचीन पुरातात्विक महत्व है
कालाढूंगी में काले रंग का पत्थर बहुतायत में मिलता है. इसीलिए इसे कालाढूंगी कहा जाने लगा. शायद इस पत्थर में लोहे की मात्र अधिक रही हो. बताया जाता है कि यहाँ अंग्रेजों ने लोहा बनाने का कारखाना खोला था. जिम कॉर्बेट अपनी पुस्तक ‘माई इण्डिया’ में उस लोहे के कारखाने का जिक्र करते हुए लिखते हैं. कि इस कारखाने के कारण क्षेत्र के जंगलों को बहुत क्षति होने का अनुमान लगाया गया.
क्योंकि लोहा बनाने के लिए जंगलों को ही काटना पड़ता. इसलिए इस कारखाने को बंद कर दिया गया. यह अंग्रेजों कि ईमानदारी को प्रदर्शित करता है. आज जिस तरह हरियाली को तहस-नहस कर हम यहाँ की उपजाऊ भूमि को रेगिस्तान में बदल रहे हैं और पर्यावरण को प्रदूषित कर रहे हैं. उससे यह नहीं लगता कि हमें यहाँ की धरती से कोई मोह भी है.